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कविता

ले देकर एक

हरीशचंद्र पांडे


कोई नहीं बच पाया इस असाध्य रोग से कहा उसने

वो नहीं बचा इलाहाबाद का और लखनऊ का वो
और वो तो दिल्ली जा कर भी नहीं बच पाया
और तो और मंत्रीजी नहीं बच पाए लंदन जाकर

उसने दस-बारह ऐसे और रोगियों के नाम लिए
फिर रोगी की ओर निराशा से देख कर धीमे से कहा
- बच नहीं पाएगा ये

दस-बारह क्या सैकड़ों रोगी थे उस असाध्य रोग के और
जो बच नहीं पाए थे

लेकिन पास ही खड़े उनके मित्र को याद नहीं आए वे सब
उसने कहा बनारस में हैं मेरे एक घनिष्ठ
जो पीड़ित थे इसी असाध्य रोग से
बहुत ही बुरी दशा थी उनकी
वे ठीक हो गए बिल्कुल और दस साल से ठीक-ठाक हैं
उसने रोगी की ओर देख कर कहा
- ये भी ठीक हो जाएगा

वही नहीं, जहाँ जो असाध्य रोगी मिला
उसने उससे यही बात कही कि बनारस में...

उसके पास ले-देकर एक उदाहरण था

 


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